गुरु तेग बहादुर का बलिदान
आज गुरु तेग बहादुर का बलिदान दिवस है लेकिन दुर्भाग्य से ऐसे महापुरुषो का जश्न
और ऐसे देश भक्तो का जश्न जोर शोर से भारत में नहीं मनाया जाता क्योंकि अभी भी ऐसे
लोग है जो मुगलो को भारत के hero मानते
है जो मुगलो को महान मानते है और मुगलो को महान मानने के चक्कर में मुगलो की
महानता बनाये रखने के चक्कर में हम असली देश भक्तों को भुला देते है
ऐसे
ही असली देश भक्त गुरु तेग बहादुर थे जिन्हे हिन्द की चादर कहा जाता था और आज हम
गुरु तेग बहादुर और उनके बलिदानो को याद करेंगे
गुरु तेग बहादुर सिक्खों के ९ वे गुरु थे उनका असली नाम त्यागामल था और वे छठे गुरु, गुरु हरि गोबिन्द के पुत्र थे।
उन्होंने मुगलो के खिलाफ लड़ाई में बहुत वीरता दिखाई जिसके बाद उनका नाम उनके पिता हरि गोबिंद ने तेग बहादुर रख दिया गुरु तेग बहादुर ने बचपन से ही तीरंदाज़ी और घुड़ सवारी की शिक्षा ली थी।
बचपन से ही उन्होंने सभी सिख गुरुओ की तरह वेद, उपनिषद, वेदांत और पुराणों को भी पढ़ा था और ये बात उन लेफ्टिस्टों और खलिस्तनिओ को बहुत ज़रूरी है समझनी जो कहते है सिख और हिन्दू बिलकुल अलग अलग है उनमे कोई भी समानता नहीं है, सारे सिख गुरु वेद, पुराण और वेदांत पढ़ते थे सभी सिख वेदान्तिक हिन्दू शिक्षा का पालन करते है और ये समझना सबसे जरुरी है की हम एक ही माँ के बच्चे है हम सनातनी भाई है और गुरु तेग बहादुर की ये कहावत गुरु ग्रन्थ साहिब में भी है जिससे की ये बिलकुल साफ़ हो जाता है
वो
बताते है की एक आदर्श व्यक्ति कैसा होना चाहिए
जो
नर दुख में दुख नहिं मानै।
सुख
सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जानै।।
नहिं
निंदा नहिं अस्तुति जाके,
लोभ-मोह अभिमाना।
हरष
शोक तें रहै नियारो, नाहिं मान-अपमाना।।
आसा
मनसा सकल त्यागि के, जग तें रहै निरासा।
काम, क्रोध जेहि परसे नाहीं, तेहि घट ब्रह्म निवासा।।
ठीक
यही चीज़ वेदांत भी हमे सिखाते है
फिर
मार्च १६६४ में गुरु हरी कृष्ण को चेचक हो गया और फिर गुरु हरि कृष्णा की मौत के
उपरांत उसी साल के अगस्त में एक सिख संगत पंजाब के बाकला में पहुंची और सिक्खो ने
९ वे गुरु के रूप में तेग बहादुर का अभिषेक किया
उस
सिख संग की अगुवाई दीवान दुर्गामल ने की और भाई गुरदित्ता द्वारा तेग बहादुर के
ऊपर एक औपचारिक टीका समारोह भी किया गया था
गुरु
तेग बहादुर ने पूरे भारत की यात्रा की और उन्होंने लोगो को मुग़ल उत्पीड़न के खिलाफ
मजबूत होने के लिए और लोगो को साथ एक जुट होने के लिए मुगलो से लड़ने को कहा
यह
सिख आंदोलन पूरे उत्तर भारत में फ़ैल रहा था और गुरु खुले तौर पर सिक्खो को
प्रोत्साहित कर रहे थे की हम एक बराबर और एक समान समाज की खोज में निडर रहें
क्योकि वह जो किसी को न डरता है और न ही किसी से डरता है उसे सच्चे ज्ञान के
व्यक्ति के रूप में स्वीकार किया जाता है
जब
गुरु तेग बहादुर का प्रभाव बढ़ रहा था तब औरंगज़ेब उनसे बहुत असुरक्षित महसूस कर रहा
था और उसने देश के ऊपर और भी इस्लामिक कानून लागु कर दिए, उसने गैर मुस्लिम स्कूलों और मंदिरो को
ध्वस्त किया और उसने गैर मुस्लिमो पर जजिया जैसे और नए कर लागु कर दिए
औरंजेब
गुरु तेग बहादुर से बहुत असुरक्षित महसूस करने लगा और उसने हिन्दुओ के उत्पीड़न को
और भी बढ़ा दिया
एक
दिन गुरु तेग बहादुर के पास कुछ कश्मीरी हिन्दू आये और उन्होंने कहा की औरंज़ेब ने
उन्हें एक अल्टीमेटम दिया है की तुम या तो इस्लाम को कबूल करो वर्ना मरने को तैयार
हो जाओ तो गुरु तेग बहादुर ने मुग़ल अधिकारिओ द्वारा कश्मीरी हिन्दुओ के इस धार्मिक
उत्पीड़न का सामना करने का फैसला किया उन्होंने अपने बेटे गुरु गोविन्द को उत्तराधिकारी
नियुक्त किया और उसके बाद उन्होंने कहा की वो औरंगज़ेब से मिलना चाहते है और अगर
औरंगज़ेब उन्हें इस्लाम में तप्दील करने में सफल हो जाता है तो फिर सभी कश्मीरी
हिन्दू इस्लाम कबूल कर लेंगे औरंगज़ेब के सैनिको ने गुरु तेग बहादुर को तुरंत ही
गिरफ्तार किया और फिर गुरु तेग बहादुर को चार महीने तक सरहिंद के एक जेल में रखा
गया फिर नवम्बर १६७५ में गुरु तेग बहादुर को दिल्ली लाया गया वहां गुरु तेग बहादुर
से औरंगज़ेब ने कहा की तुम अगर ईश्वर के इतने निकट हो तब एक चमत्कार करके दिखाओ
गुरु ने औरंगज़ेब को यह कहा की चमत्कार से ये नहीं पता चलता की एक व्यक्ति ईश्वर के कितने निकट है या कितने दूर है नाराज़ होकर औरंगज़ेब ने गुरु तेग बहादुर को इस्लाम कबूल करने के लिए कहा उन्होंने कहा की मै तुम्हे और तुम्हारे सारे साथियों को जाने दूंगा और परेशान नहीं करूँगा अगर तुमने और उन सबने इस्लाम कबूल कर लिया तो लेकिन गुरु तेग बहादुर ने सीधा सीधा इंकार कर दिया फिर औरंगज़ेब ने गुरु के तीन साथियों को जिन्हे गुरु के साथ गिरफ्तार किया उनके आँखों के सामने मौत के घाट उतार दिया
भाई
मति दास को टुकड़ो में काट दिया गया
भाई
दयाल दास को उबलते पानी में फ़ेंक दिया गया
और
भाई सती दास को जिन्दा जला दिया गया
जबकि गुरु तेग बहादुर को उनके सामने एक पिंजरे में रखा गया ताकि वो अपने सहियोगियो को अपनी आंखों से मरते हुए देख सके फिर औरंज़ेब ने उनसे पुछा तुम इस्लाम कबूल करोगे या नहीं गुरु तेग बहादुर ने फिर सीधे सीधे इंकार कर दिया और फिर गुरु तेग बहादुर का चांदनी चौक में सार्वजनिक रूप से सर कलम कर दिया गया।
गुरु तेग बहादुर का बलिदान हिन्दुओं के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण मोड़ था हिन्दुओ को यह एहसास हुआ की मुग़ल और औरंगज़ेब सिर्फ शाशन नहीं करना चाहते थे वो भारत से हिन्दुओ की हस्ती मिटाना चाहते है।
गुरु तेग बहादुर का बलिदान वह घटना थी जिसने सही मायने में मुग़ल साम्राज्यवाद के अंत के शुरुवात का संकेत दिया था हिन्दुओ और भारतीय सभ्यता की रक्षा के लिए किये गए उनके सर्वोच्च बलिदान के लिए गुरु तेग बहादुर को हिन्द की चादर कहा जाता है।
उनके
बलिदान के बाद उत्तर भारत के हिन्दुओं ने यह महसूस किया की मुगलो के इस मुद्दे को
बात चीत से हल नहीं किया जायेगा अगर हिन्दू जीवित रहना चाहते है तो हिन्दुओ को
संगठित होने की और संघर्ष करने की आवश्यकता है इस बात को पूरी तरह जानते हुए और इस
बात को पूरी तरह से महसूस करते हुए गुरु तेग बहादुर के पुत्र गुरु गोविन्द सिंह ने
खालसा का गठन किया और हिन्दुओ के संगठन को और हिन्दुओ के संगठित संघर्ष के लक्ष्य
को हासिल किया।
खालसा हिन्दू समाज का एक सैन्य दल था जिसे मुग़ल कब्ज़े से लड़ने और भारत के हिन्दुओ को उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाया गया था लेकिन दुर्भाग्य से आज़ादी के बाद हमने इस वास्तविक इतिहास को जानने के बजाय हमने इस टूटे फूटे धर्म निरपेक्षता यानि secularism के concept को अपनाया और इस टूटे फूटे concept को अपनाने के लिए हमने एक झूठा इतिहास रचा और इस झूठे इतिहास को रचने के लिए हम तेग बहादुर जैसे असली देश भक्तो को भूल गए हम महाराणा प्रताप, लच्छित बोर्फुकान, पजहस्सी राजा, छत्रपति शिवजी जैसे देश के असली सपूतो को भूल गए और लोदी, बाबर, औरंगज़ेब जैसे लोगो को हमने याद रखा हमने अपनी सड़के इनके नाम पे रखी।
गुरु तेग बहादुर के बलिदान को हमे याद रखने की जरुरत है क्योंकि गुरु तेग बहादुर के इस बलिदान ने इस बात को उजागर कर दिया की अत्याचार के सामने भारतीय धर्म आत्म समर्पण नहीं करेगा और अपने आखरी दम तक भारत के लोग धर्म के लिए लड़ते रहेंगे और इसलिए गुरु तेग बहादुर को मेरा प्रणाम।
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